naimishtirth
 
 
ऐतिहासिक स्थल
पावन चक्रतीर्थ
चक्रतीर्थ का महिमा अंत्यत अदभुद है, एक बार 88000 ऋषि-मुनियों ने श्री ब्रम्हा जी से निवेदन कि हे पितामह, जगत कल्याण के लिये तपस्या हेतू विश्व में सौम्य और शांन्त भूमि का निर्देश करें. उस समय जगत नियन्ता श्री ब्रम्हा ने अपने मन से एक चक्र उत्पन्न करके ऋषियों को आज्ञा दिया कि हे ऋषियों इस मनोमय चक्र के पीछे चलकर उसका अनुकरण करो, जिस भूमि पर इस चक्र की नेमि ( अर्थात मध्य भाग ) स्वतः गिर जाये तो समझ लेना कि, पॄथ्वी का मध्य भाग वही है, तथा विश्व की सबसे दिव्य भूमि भी वही है. इस परम पवित्र भूमि के दर्शन विना जीव का जीवन भी कभी सफल नहीं होता. अतःजीवन में इस चक्र तीर्थ का मार्जन इकबार अवश्य करना चाहिये.


Pavan Chakratirtha

 


 
सुंन्दरी मा श्री ललिता
मा ललिता का मंन्दिर पुरे भारत की आस्था का प्रतिक है, जिसमें मा ललिता अपने लाडलों पर दया कॄपा करने के लिये सदा विराजमान रहती है. जिस समय पितामह ब्रम्ह द्वारा छोडे गये चक्र का अनुकरण किया, वह चक्र लोक लोकांन्तरो में भ्रमण करता हुआ इस तपोगन में पहुचा. यहा पहुचते ही उसकी नेमि स्वत: इस भूमि में गिर गयी. जिसके गिरने से पॄथ्वी के सात तलो में से 6.5 तलो का भेदन हो गया. उस समय की पुकार सुनकर मा ने प्रगट होकर उस तीव्र चक्र को स्थिरता प्रदान किया था.
यदि कही उस समय मा की कॄपा नही होती, तो आज संसार ही नही होता. इस मा के दर्शन करने मात्र से हर मा का बेटा बुध्दिमान तथा आत्मज्ञानी हो जाता है.


ma lalita
 

 
व्यासगद्दी
जिस जगह पर हजारों वर्षो तक ज्ञान विज्ञान कि चर्चा होती रही, उसे व्यासगद्दी कहते है. आज भी यहा 5090 वर्ष का प्राचीन प्रकॄति पुत्र विशाल अक्षय वट विराज मान है जिसका एक मिनट सानिध्य मानव जीवन में विचित्र परिवर्तन ला देता है. आयु, आरोग्य, आस्था और अधिकार इसके वरदान है. हर सांसरिक प्राणी जावन के किसी किसी मोड पर विश्राम तथा शांन्ति पाना चाहता है. शांन्ति का प्रतिक है व्यासगद्दी आश्रम. इस पावन आश्रम में आपको मिलेगा विश्राम, शांन्ति, गीत संगीत ध्यान वेदध्व्नी और ऋषियों का प्यार तथा दुलार. यह मानव जीवन खाकर पीकर सोकर निकलने के लिए नही मिला है. बल्कि जागने तथा जगाने के लिए मिला है. मोहनिशा से निकल कर बाहर आओ प्यारे. ज्ञान भूमि नैमिषारण्य की शरण मे आकर अपने मोह के इतने टुकडे कर दो की वापस तुम भी चाहो तो जुड नासकें. इस स्वर्णिम शुरुआत मे हम आपके साथ है.


vyasgaddi
 

 
नैमिषारण्य और सूत पौराणिक जी महाराज
किसी भी वीवार के व्यापक प्रचार के लिये माध्यम कि परमाअवश्यकता होती है. जब महर्षि व्यास जी ने आध्यात्मिक ग्रन्थों की रचना किया, तो उनको जन मानस तक पहुचाने के लिये अपने परम शिष्य श्री रोमहर्षण सूत जी का माध्यम लिया था. नैमिषारण्य की पावन तपोभूमि पर ही महामुनि सूत जी ने 88000 ऋषि-मुनियों के प्रश्न करने पर अपने गुरुश्री व्यास जी द्वारा प्राप्त संम्पूर्ण ज्ञान का उपदेश किया था.
आज भी इस आश्रम में भागवत के श्लोक तथा वेद ध्वनि सुनाई देती है.


 

 
श्री निम्बार्कान
प्यारे सज्जनों! जिस समय ऋषि-मुनियों ने नैमिषारण्य का खोज किया, उस समय खोज के निमित्त श्री चक्रतीर्थ पॄथ्वी 6.5 पातालों का भेदन कर दिया था. उस समय भयभीत ऋषि-मुनियों को साहस एवं सात्त्वन प्रदान करते हेतु श्री चक्रावतार श्री निम्बार्क भगवान नैमिषारण्य में प्रगट हुये थे. अनादि काल से लुप्त इस पावन स्थान को प्रगट हेतू श्री शास्त्री जी ने प्रयाग पीठाधीश्वर श्री निम्बार्क गोस्वामी श्री विष्णुकांत जी महाराज के संरक्षण में श्री निम्बार्क भगवान की पतस्थली श्री निम्बार्क प्रभास्थली का र्निमाण किया है. जिसके दर्शन मात्र से 84 लाख योनियों के भटकते जीव सहज ही मोक्ष को प्राप्त कर लेते है तथा जीव 21 पीढीयों को परम पद प्राप्त हो जाता है.


 

 
नैमिषारण्य और ऋषि-गौशाला
भारत भूमि में मां शब्द की बहुत बडी महिमा है पॄथ्वी माता, भारत माता, गौ माता
इस परम सत्य के मानने से कोई मना नही कर सकता, कि गाय माता देव माता नही है. सारा संसार ही नही बल्कि देवताओं के आराध्य भगवान श्री कॄष्णने भी अपने काल में सबसे ज्यादा महत्त्व गायों को ही देकर मानो समूचे संसार को यह संदेश दिया है. कि जो व्यक्ति अपने जीवन में अपने माता पिता के साथ अपने दर्द को बता पाने में असमर्थ गायों की सवबी करता है. उसकी २१ पीढीया स्वतः ही वैकुंठ को प्राप्त कर लेती है. इसी तथ्य का मूल आधार है नैमिषारण्य ऋषि-गौशाला.


 


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श्री शैलेंद्र शास्त्री जी महाराज
संरक्षक श्रीमद भागवत प्रचार संस्थान
व्यासगद्दी नैमिषारण्य
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